एक बार की बात है , अंकित नाम का लड़का अपने माता-पिता के से साथ रहता था. उसे छोटे-छोटे बातों से डर लगता था.

अगर उससे कोई गलती हो जाती और उसके माता-पिता उसे पूछते की ये कैसे हुआ तब वह बोलता , की ”मुझे कुछ नही पता”.

अगर कभी उसे स्कूल जाने में देरी हो जाती तो जो उसके पास थोडा भी समय बचता तो उसे फालतु कामों में लगा देता,

ताकि उसे डाट न पड़े , इस बात से उसके माता-पिता बहुत परेशान थे . अगले दिन उसके पापा से उसे बहुत डाट पड़ी क्योंकि उसके माता-पिता इस बात से परेशान थे ,

की वह एक ही गलती दोहराता रहता , एक दिन उसने घर छोड़ दिया.

वह एक महीने तक घूमता रहा तब उसे इस बात का अपसोस हुआ की उसके माता-पिता उसे कितना भी डाटे वह हमारे भलाई के लिए ही करते है,

और दूसरी तरफ़ उसके माता-पिता उसे धुन्द्ते-धुन्द्ते परेशांन हो गये थे ,

अंकित अपने घर जब वापस लौटा तब उसने दरवाजा ख़त खटाया तब जैसे ही उसकी मम्मी जिनके चेहरा लटका हुआ था वो तुरत से ही खिल उठा मनो जैसे कुछ ऐसा मिल गया हो जो उसे हमेसा से चाहिए था.

फिर उसने माफ़ी माँगा खाना खाया और अपने मम्मी-पापा के साथ सो गया

सीख- हमारे माता-पिता जो करते है , हमारी भलाई के लिए ही कहते है.

-श्रुति कुमारी