भारत के कई लोग गरीबी रेखा से निचे रहते है. खास कर दूर दराज के गांव की महिलाओ की स्थिति कुछ अच्छी नहीं है. कुछ लोग गरीबी से नहीं लड़ पाते और हार मान लेते है लेकिन कुछ लोग गरीबी से लड़ कर आगे बढ़ते है. कुछ लोग हमेशा इस प्रयास में रहते है की कैसे अपने जीवन को एक सही दिशा दी जाए. यह कहानी अनीता की है. अनीता गरीबी के सामने अडिग रही और आज आत्मनिर्भर हो चुकी है.
अनीता एक समूह चलाती है. वो हाथ से बने हुए कुर्सी, मेज, दरी, टोकरी, कटोरी, प्लेट, पेन, बॉक्स, झालर, झूमर और मूंज तैयार करती है. फिर इस प्रोडक्ट को बाज़ार में बेच कर अपना भरण-पोषण करती है. इतना ही नहीं अनीता ने अपने साथ कई और महिलाओं को काम दिया है. सभी एक स्वयं सहायता समूह के जरिये इन सभी वस्तुओं का निर्माण करती है.
अनीता ने +2 तक की पढाई की है. अनीता के पति एक किसान है. वह 3 वर्ष से इस काम में लगी हुई है. इस काम से उनको अच्छा मुनाफा होता है. कोई प्रोडक्ट 100 का बिकता है तो कोई 200 का बिकता है. लेकिन उनके पास 1000 रूपये से दो हजार रूपये तक के प्रोडक्ट है.
अनीता एक छोटे से गाँव की निवासी है. एक बार अनीता के बच्चे ने दुकान के सामने बिस्किट खरीदने का जिद करने लगा, माँ के पास पैसे नहीं थे. बेटा रोने लगा. माँ को इस बात से बहुत तकलीफ हुआ. समय के साथ अनीता को भी आत्मनिर्भर बनने की इच्छा हुई। अनीता की इस प्रेरणादायक कहानी साबित करती है कि गरीबी के बावजूद भी अगर कोई व्यक्ति निरंतर प्रयासरत रहे और स्वावलंबी बनने का संकल्प करे, तो वह अपने जीवन में सफलता की ऊंचाइयों को छू सकता है।