प्लास्टिक पर्यावरण के लिए बहुत हानिकारक होता है. सभी जगह प्लास्टिक पर बैन लगा दिया गया है. जब से प्लास्टिक कपों पर प्रतिबंध लगा है. लोग किसी दुसरे ऑर्गेनिक वस्तुओं का प्रयोग करना शुरू कर दिया है. चीनी मिट्टी के कपों और कुल्हड़ की मांग और लकड़ी से बने वस्तुओं की मांग बढ़ी है। लेकिन आज हम चीनी मिट्टी या कुल्हड़ की चर्चा नहीं कर रहे हैं।
हम बात कर रहे हैं बांस की लकड़ी से बने हस्तनिर्मित कपों की। जी हाँ दोस्तों बिहार के कुछ जगह पर बांस के कप बनाये जा रहे है. इन कपों की डिमांड मिर्जापुर गांव की तीन महिलाओं ने बढ़ाई है। दीपा और अन्य महिलाएं प्रतिदिन 20 से अधिक कप तैयार करती हैं.
जो लोकल मार्केट में 100 से 120 रुपये में बेचती हैं। ये महिलाएं बांस की प्यालियों को बनाने के लिए पटना में प्रशिक्षण भी लेती हैं। बांस की कटाई से लेकर प्याली बनाने तक का पूरा प्रक्रिया वे सीखती हैं। पर्यावरण के दृष्टि से यह एक सकरात्मक कदम है. इससे प्लास्टिक के रोक थाम में काफी मदद मिलेगी और ऑर्गेनिक वस्तुओं की डिमांड बढ़ेगी.
आपको यह जानकारी दे दें की बांस की लकड़ी से बने कपों की तारीफ की जा रही है। बांस के कपों की निर्माण में मिर्जापुर के महिलाओं का योगदान है। बांस के कपों के निर्माण में गांव की तीन महिलाएं शामिल हैं। आय के दृष्टि से भी यह एक अच्छा विकल्प माना जा रहा है. बांस के कपों की कीमत व्यापक है और 100 से 120 प्रति पीस है।
उन महिलाओ ने बताया की वे डेली 20 से अधिक कप तैयार कर रही हैं। बांस की लकड़ी को चमकाने के लिए उसपर बार्लिस लगाया जाता है। बांस के कपों की तैयारी का काम संगठित रूप से होता है। लोग बांस के कपों को आसानी से खरीदते हैं।